जर्मन के महाकवि गेटे का कथन है-““जहां भी तू है, पूरी तरह वहीं हो ।” यह एक बड़ा भारी मन्त्र है कि काम को सिर्फ एक बार (एक बार में ही) करो । जो काम हाथ में है, उसमें अपने सारे के सारे व्यक्तित को केन्द्रित कर दो ।परिणाम क्या होगा, यह मत सोचते रहो । काम समाप्त करने के कुछ भी परिणाम हो, पश्चाताप न करो। कार्नेगी का कथन है कि “नौजवानों के व्यापार में असफल होने का बड़ा कारण यह है कि वे अपने मन को एकाग्र नहीं कर पाते |” क्या प्रत्येक व्यक्ति जो बड़ा बना है, प्रत्येक व्यक्ति जो सफल हुआ है, उसने अपनी शक्तियों को एक विशेष धारा में सीमित नहीं किया? इससे कोई लाभ नहीं कि पूरी तरह ध्यान दिये बिना कोई काम करो। उचित यह है कि एक काम को पूरे ध्यान से करो, वह काम जो तुम्हारे उस क्षण की ज़रूरत है।
आजके अत्यधिक व्यस्त जमाने में जो अपने प्रयत्नों को बिखेरता है, वह सफल होने की आशा नहीं कर सकता । मानसिक चंचलता अनेक असफलताओं का कारण है। अस्थिर उद्देश्य, डगमगाते ध्येय, इनके लिए बीसवीं सदी में कोई स्थान नहीं है। ऐसा परिश्रम जो गलत दिशा में किया जाये, मात्र अपनी क्रिया-शक्ति को नष्ट करना ही है। यह भी हो सकता है कि मनुष्य हमेशा कार्य करता रहे, फिर भी जीवन में आगे न बढ़े ।एक बच्चे ने अपने खिलौने के इंजन के बारे में कहा-““यह एक गाड़ी की तरह भाप निकालता है, यह इंजन की तरह सीटी देता है, परन्तु यह जाता कहीं नहीं है।” किसान ने अपने नये नौकर से कहा-“’देखो, सुनो, इस तरह काम नहीं चलेगा।
तुम्हारा हल टेढ़ा चलता है। इन लकीरों पर पैदा फसल किसी काम की नहीं होगी। अपनी आंखें खेत के पार किसी चीज पर जमाए रखो और उस ओर चलते जाओ | देखो, वह गाय खेत के उस पार खड़ी है। हल चलाना आरम्भ करो और आंखें उस पर जमाए रखो तो तुम्हारा हल सीधी लकीर पर चलेगा ।”” “बहुत अच्छा श्रीमान् जी!” दस मिनट पश्चात् जब किसान लौटा तो हन सारे खेत में चक्कर में घूम रहा था।
“अरे रुको, रुको!” पैट्रिक वहीं से बोला-“’श्रीमान् जी, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने आपके कहे अनुसार ही काम किया है। मैं तो गाय पर आंखें जमाए सीधा जाना चाहता हूं, परन्तु गाय तो कहीं एक जगह ठहरती ही नहीं ।”
घूमता-फिरता उद्देश्य! उसके पीछे इधर-उधर भटकते फिरना, जीवन की उदेदश्यहीन, विचारहीन तथा बुद्धिहीन व्यवस्था-यह और क्या है, सिवाय असफलता को निमन्त्रण देने के? जो असफल होते हैं और जो सफल होते हैं-उसके बीच का यह बड़ा अन्तर इस कारण नहीं है कि उनमें से प्रत्येक ने कितना कार्य किया है। वास्तविक कारण यह है कि बुद्धिपूर्वक कितना कार्य किया है।एक व्यक्ति जिसमें बुद्धि की सिर्फ एक इकाई है परन्तु वह एक स्थिर उद्देश्य पर अपनी शक्तियों को विखेरता फिरता है और उसे कभी यह ज्ञात नहीं होता कि अब आगे क्या करना है।
ऐसे व्यक्ति का कोई मुकाबला नहीं कर सकता, जिसका कोई स्थिर उद्देश्य होता है और जो उसमें तन-मन-धन से, पूर्ण व्यक्तित्व से लग जाता है। बड़ी-से-बड़ी शिक्षा, मेहनत और इच्छाशक्ति इसका मुकायला करने में समर्थ नहीं है। उददेश्यहीन जीवन अवश्य ही असफल होगा। एक प्रसिद्ध नाटककार का कथन है कि-“यह सही है कि कुछ ऐसी नौकाएं भी किस्मत से तट पर आ लगती हैं जिन्हें भली-भांति ठीक दिशा में नहीं चलाया गया, तो भी कुल मिलाकर जो व्यक्ति अग्थिर मन से इधर-से-उधर जाता रहता है,
नाविकों की भाषा में ‘उबासी लेता रहता है’-पहले इस मार्ग से जाता है, फिर उससे, यह बिल्कुब निश्चित है कि वह जीवन की यात्रा के आधा रास्ता पूरा होने से पहले ही उठाकर फेंक दिया जाएगा।यदि हम किसी फैक्ट्री में जायें जहां कि दिग्दर्शक यन्त्रों (कुतुबनुमा) का निर्माण होता है तो हम देखेंगे कि सुंईयां जब तक चुम्बकित नहीं कर दी जातीं,
उनका मुख किसी भी दिशा में होता है, लेकिन जब वे चुम्यकित कर दी जाती हैं और उनमें विशेष शक्ति आ जाती है,उस क्षण से उनका मुंह बस उत्तर की ओर रहता है और उसके बाद वे हमेशा सच्चाई से उसी दिशा की ओर सकेत करती रहती हैं। कोई भी मनुष्य कभी भी किसी एक दिशा की ओर स्थिरता से उन्मुख नहीं
रह सकता जब तक कि वह किसी आदर्श जीवन-दिशा चुनाव नहीं कर लेता है। बिना किसी जीवन-योजना के काम करना ऐसा ही मूर्खतापूर्ण है जैसा कि बिना दिग्दर्शक यन्त्र के समुद्र में जाना ।जिस जहाज की पतवार टूट जाती है, चाहे उसका इंजन भाप से भरा हो और चाहे वह सारा समय तैरता रहे, वह किसी बन्दरगाह पर नहीं पहुंचता ।“कुनार्ड हाइट स्टार कम्पनी” के जहाज मशहूर हैं। जब समुद्र शान्त होता है, जब जलधारा और वायु अनुकूल होती है, उसके जहाज सीधे बन्दरगाह पर पहुंचते हैं और जब तूफान उठ रहा होता है और कहर छा जाता है, तब भी वे चलते जाते हैं।
उनके सामने मात्र एक उद्देश्य होता है और वह है बन्दरगाह, जहां उन्हे पहुंचना है। वे इसकी परवाह नहीं करते कि मौसम कैसा है, कौन-सी बाधा उनके मुकाबले में आती है।विपरीत परिस्थतियों में भी उनके जहाजों के बन्दरगाहों पर पहुंचने की भविष्यवाणी की जा सकती है। बोस्टन के लिए चला हुआ उनका जहाज कभी न्यूयॉक नहीं पहुंचा।नौजवान किसी एक सबसे अच्छे लगने वाले उद्देश्य के प्रति समर्पित हो सकते हैं। पूर्णरूप से उनको पूरा करने में लगे रहना, अन्धा होकर उस पेशे या कार्य में संलग्नता जो कि कुछ समय के लिए और सब हो सकने वाले जीवन-मार्गों को भुला दे।
जो व्यक्ति जीवन में भयंकर रूप से असफल रहते हैं वे ही हैं जो उद्देश्यहीन हैं, कार्य में रुचि न लेने वाले हैं, चंचल हैं, अधूरे मन से काम करने वाले हैं।उनके चरित्र में दृढ़ता से काम में लगे रहने का, अपने कार्यों को एक सूत्र में पिरोने का, अपने जीवन को दिशा देने का तथा जीवन को अर्थयुक्त करने का गुण नहीं होता । हम आपसे ऐसे आदमी की प्रशंसा करते हैं जो कोई उद्देश्य निर्धारित कर पूर्णतया उसमें खो जाता है।जो कुछ भी वह करता है, उसमें एक नैतिक ऊंचाई होती है क्योंकि उसके कार्यों का उद्देश्य होता है, उनमें ऋजुता होती है, उनमें एक अर्थ होता है । ये सब य गुण संक्रामक हैं।
जो भी व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के प्रभाव-द्षेत्र में आते हैं, वे गुण को ग्रहण कर लेते हैं। ‘ मेजर विलियम मैक फिनले ओटहियो क्षेत्र से कांग्रेस का सदस्य निर्वाचित क.। प्रेजीटैट हेयस ने उसे निम्न सलाह दी थी-“सफलता तथा यश प्राप्त के लिए यह जरूरी है कि तुम किसी विशेष दिशा की ओर चलो।ऐसा करो कि जो भी प्रस्ताव या विधेयक सामने आए, उस पर बोलना । तुम अपने को उसी विषय में सीमित रखो, जिसका तुम विशेष अध्ययन करते हो। विशेषज्ञ बनो! कानून की कोई शाखा ले लो और अध्ययन का विषय बना लो। तुम चुंगी का विषय क्यों नहीं लेते? विषय है जो कि आगामी कई वर्षों तक निर्धारित नहीं होगा। इसमें का बहुत अवकाश है ।” |
विलियम के कान में प्रेजीडेंट के ये शब्द गूंजते रहे । उसने चुंगी के विषय का विशेष अध्ययन प्रारम्भ कर दिया और जल्द ही इस विषय के अग्रगण्य विशेषज्ञों में गिना जाने लगा । और जब संसद द्वारा उसका चुंगी-विधेयक पारित किया गया तो वह उसके कांग्रेस-जीवन का सर्वोत्तम क्षण था।जो मनुष्य अपने आपको पूर्णतया एक विचार के प्रति समर्पित कर देता है, वह अवश्य कुछ-न-कुछ हासिल कर लेता है और यदि उसमें योग्यता तथा सामान्य ज्ञान (कॉमन सेन्स) है तो उसकी सफलता और भी अधिक होगी।
स्वयं को ढाल लेने का गुण जीवन चलाने के लिए अत्यावश्यक है। परन्तु इसके साथ यह भी सच है कि तुम जिस किसी काम में लगे हो, महाकवि गेटे के शब्दों में तुम्हें ‘पूरी तरह वहीं? होना चाहिए।तुम्हें उसके लिए सोचना है, उसके लिए योजना बनानी है, उसके लिए काम करना है, उसके लिए जीना है, उसमें अपना मन, शक्ति, ऊर्जा, हृदय तथा आत्मा सब-कुछ समर्पित कर देना है, सफलता स्वयं आकर तुम्हारे गले में जयमाला डालेगी जो आज सफल दिखाई देते हैं, वे सब ऐसे व्यक्ति हैं जिनके सम्मुख एक अनन्य विचार है, जिनके जीवन में कोई एक और अत्यन्त ‘प्रेय” उद्देश्य है। इसके उदाहरण के रूप में मैं जॉन हॉपकिन्स की जीवन-कथा प्रस्तुत करना चाहता हूं।
उसने यह घोषणा कर दी थी कि “परमात्मा की ओर से मुझे यह कार्य सौंपा गया है कि मैं अपने धन को बढ़ाऊं। महान् धनराशि जो मैं कमाता हूं वह उधार मांगने वालों या भिखमंगों के लिए नहीं है ।”लोग उसे बड़ा कंजूस, कमीना, कौड़ी-कोड़ी को दांत से पकड़ने वाला कहते थे। परन्तु उस पर इसका कुछ प्रभाव नहीं होता था। कई वर्षो के कार्यकाल में उसका एक ही उद्देश्य था और वह था कई लाख डॉलर कमाना।
वह अपने इस उद्देश्य में सफल हुआ। इसके बाद उसने अपना जमा धन अपने खुले हाथों से दान कर दिया। 40 लाख डॉलर एक बड़े विश्वविद्यालय को दिये और 20 लाख डॉलर अन्य संस्थाओं के लिये। उसने अपने व्यापारिक जीवन के आरम्भ में जो योजना बनाई थी, यह सब उसी के अनुसार है।सुनता हूं आवाज एक मैं, जिसे न सुन सकते तुम हो, जो कहती है कभी ठहरना मत क्षण भी जीवन पथ पर,देख रहा मैं हाथ एक जिसको न देख सकते तुम हो, जो करता है मुझे इशारा-“आगे, दूर, दूर, बढ़ कर’।
जब प्रसिद्ध डॉ जार्ज एफ शार्डी की आयु 19 वर्ष की थी तो उसने अपने धनी पिता से कहा कि मैं लम्बी छुट्टियों में बाहर जाकर कुछ पैसा कमाना चाहता हूं | वृद्ध भद्र पुरुष ने समझाने की कोशिश की कि बेटा न जाए। एक दिन वह नौजवान डगलस की व्यापारिक एजेंसी में गया। आजकल यह एजेंती आर० जी० दुन के नाम से जानी जाती है। एजेंन्सी में जाकर नौजवान शार्डी ने श्री डगलस को कहा-“मुझे कुछ काम चाहिए।/!
श्री डगलस ने उत्तर दिया-“’हमारे पास इस समय ऐसा कोई काम नहीं जो तुम्हें दे सकें।”” नौजवान ने कुछ अपमानित सा महसूस करके कहा-““आपके पास है।” उसे रेखाचित्र बनाने का अच्छा अभ्यास था।कलम से कुछ रेखाओं से उसने एक सुन्दर हंस बना दिया और श्री डगलस को दिखाया। उन्होंने आश्चर्य से कहा-“’क्या तुम चित्र बनाना जानते हो?” “हां।” उसने विनम्रता से कहा। सेंट “अच्छा, हम तुम्हें 5 डॉलर प्रति सप्ताह देंगे और अधिक समय के 5 सेंट प्रति घण्टा देंगे।”
श्री डगलस ने कहा। युवक शार्डी ने कहा-“’मुझे मंजूर है।” श्री डगलस ने कहा-“तो फिर तुम कल से काम आरम्भ कर दो ।” युवक बोला-“’क्यों, अभी आरम्भ करने में क्या परेशानी है?”” डगलस ने कहा, “अच्छा अभी आरम्भ करो /”और मैनेजर से कहा कि “इस लड़के को एक डेस्क दे दो।” श्री डगलस को जल्द ही पता चल गया कि नायक वक 150 शब्द प्रति मिनट की गति से शीघ्रलिपि (शॉर्टहैंड) में लिख सकता है। उन्होंने एक दिन उसके सामने अखबार का एक लेख पढ़कर परीक्षा ली।
उन्होंने उसे अपने निजी सचिव (प्राइवेट सैक्रेटटी) का काम करने के लिए कहा। नवयुवक ने इन्कार कर दिया और कहा कि “मैं डॉक्टर बनना चाहता हूं।” डलगस ने उसे अनुत्साहित करते हुए कहा- तुम्हारा दिमाग व्यापार के लिए बना है। तुम कभी डॉक्टर नहीं बन सकते ।” बीस वर्ष पश्चात् श्रीमती डगलस, डॉ० शार्डी के यहां चिकित्सा करवाने
के लिए गई। मुडर का कहना है कि “सिवाय एक स्पष्ट व दृढ़ उद्देश्य के, सफलता के लिए कोई अन्य राह नहीं है। चरित्र, संस्कृति, पद तथा किसी प्रकार की सफलता की पृष्ठभूमि में कोई उद्देश्य होता है।”व्यक्ति को कभी आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। जिस प्रकार आशा में निराशा छुपी होती है उसी प्रकार निराशा में भी आशा छुपी है, आवश्यकता है तो बस उसे खोजने की। दोस्तों यह पोस्ट पसंद आया हो तो प्लीज अपने दोस्तों को शेयर जरूर करें।