चिंता से मुक्ति/ win motivation
हममें से ज्यादातर लोग इस बात से चिन्तित पाये जाते हैं कि उनका आने वाला कल कैसे कटेगा? कल का जेबखर्च, परिवार-खर्च व कल आने वाले लोगों को उनका ऋण कैसे चुकाया जायेगा। कुछ लोगों को उस वक्त की पहले ही चिन्ता सताने लगती है जो कि अभी उनसे काफी दूर है। कभी हम मकान मालिक के किराये की चिन्ता करते हैं, तो कभी बच्चों के विद्यालय की फीस की, कभी हम बेटी के विवाह के लिए सोच-सोच कर परेशान होते हैं तो कभी अपनी वृद्धावस्था की कल्पना करके सिहर उतते हैं। study motivation इस सबका नतीजा यह होता है कि आने वाले कल की चिन्ता करके हम अपने वर्तमान यानी आज को भी बर्बाद कर डालते हैं। आने वाले कल की जीविका की चिन्ता ही हमारी आज की नींद उड़ा देती है। चिन्ता दैनिक समस्याओं को सुलझाने के बजाय और भी उलझा देती है। परेशानी की हालत में हम सही ढंग से सोच भी नहीं सकते। study motivation
हम बहुत-सी सम्भावित अप्रिय घटनाओं के बारे में सोचकर ही अपना जीवन बर्बाद कर डालते हैं, जबकि ऐसी घटनाएं हमारे वास्तविक जीवन में कभी नहीं घटतीं | success motivation कुछ लोग तो ऐसे जान पड़ते हैं मानो उनका समूचा जीवन ही चिन्ताओं के लिए बना हो। उन्हें परेशान होने के लिए कोई न कोई बहाना चाहिए। मामूली-से संकट का आभास होने पर ये माथा पकड़कर बैठ जायेंगे।हम लोग अन्य किसी बात से शायद ही इतने परेशान होंगे, जितने कि आने वाले कल की जीविका से हैं। हमें एक ही चिन्ता है कि हमारा आने वाला कल कैसे बीतेगा? motivation compilation
हम जाग रहे हैं तथा इतने परेशान हो रहे हैं कि जो शक्ति : हमें कल के जीवन-संघर्ष के लिए संचित करनी चाहिए, उसे हम व्यर्थ ही गंवा रहे हैं।इस प्रकार ऋण की चिन्ता में, सैमस्त मानव जाति के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए विश्व क्रो बदलने की चिन्ता में बहुत-सी शक्ति व्यर्थ गंवा देते हममें से अधिकांश लोग अपना अमूल्य जीवन यों ही गुजार देते हैं तथा ऐसी भयंकर बातें सोचा करते हैं, iit motivation जो कि वास्तविक जीवन में कभी घटित ही नहीं होतीं।अमंगल की चिन्ता में लाखों लोग स्वयं को खुशियों से वंचित कर लेते हैं। सदेव उन्हें अशुभ ही नजर आता है। उन्हें जो कार्य एक बार करना होता है, कल्पना में वे उसे अनेक बार कर जाते हैं। साथ ही वे असफलत से भयभीत भी रहते हैं।
बहुत से नारी दिन में कष्ट नहीं भोगते, वे रात को भी सांसारिक परेशानियों में घिरे रहते हैं। क्योंकि रात की नीरक्ता में कल्पना अधिकाधिक सक्रिय हो उठती है तथा आपदाएं उग्रतम रूप धारण कर लेती हैं।अक्सर लोग अपनी इंश्योरेंस पॉलिसी के विषय में सोचते हैं साथ ही उस रुपये के बारे में सोचा करते हैं, जो कि उन्होंने मकान गिरवी रखकर लिया है।ऐसे में उन्हें ऋण कई गुणा दिखाई देता है तथा लगता है कि जल्द ही अदा करना है। ऐसे लोगों को सदैव अमंगल एवं असफलता ही आशंका सताती है। ये लोग लो भविष्य को अंधकारमय, विपदाओं एवं संकटों से परिपूर्ण महसूस करते हैं।
एक बार किसी महिला ने अपने मनमौजी पति को याद दिलाया कि हमें छठे रोज मकान का किराया देना है। इस पर उसके मनमौजी पति ने जवाब दिया, “इसका मतलब है कि पांच दिन चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं, छठे दिन जैसी स्थिति होगी, देखे लेंगे।” द इस दार्शनिक पति से कितने लोग यह शिक्षा लेंगे कि निश्चित वक्त से पूर्व पेशान होने की कतई जरूरत नहीं? शायद उन्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि वह निश्चित समय जीवन में कभी आता ही नहीं।
हमें चाहिए कि हम तमाम चिन्ताओं को त्यागकर अपने काम में जुट जायें। जो कुछ गुजर चुका है, जो हमारे वश में नहीं है अथवा भावी अमंगल के लिए चिन्तित होना व्यर्थ है।इससे हमें कोई भी लाभ होने वाला नहीं है, उल्टे हमारी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता ही नष्ट होती है। वास्तव में चिन्ता एक ऐसी कुरूपता है जिसका कोई भी अंग सुन्दर नहीं है। यह एक आध्यात्मिक अल्पदृष्टि है जो कि छोटी छोटी चीजों कों टटोलकर बड़ा बनाती है।
इससे प्रभावित होकर हमारे आने वाले कल की रोटी का आकार घट जाया करता है। ईर्ष्या द्वेश घृणा परेशानी स्पर्धा, चिन्ता भय की ही सन्तानेहैं। ये सब एक ही परिवार के सदस्य हैं तथा विष उन्हें विरासत में मिला है। यह विष माया में जो रासायनिक परिवर्तन लाता है, उसके कारण उस व्यक्ति के मस्तिष्क के सेल कमजोर पड़ जाते हैं, जो कि भय एवं चिन्ताओं से ग्रस्त रहता है।
वास्तव में चिन्ता हमारे ही देश की विशेष उपज है। यूरोपीय देशों की भाषा में इस अर्थ का कोई शब्द ही नहीं पाया जाता। व्यक्ति को चिन्ता चिता के समान है। हमारे धर्म शास्त्रों में स्पष्ट रूप से वर्जित है कि लोभ, मोह एवं स्वार्थ का त्याग करो। लेकिन हम हैं कि लोभ, मोह एवं स्वार्थ में फंसकर चिन्ताओं को ही बढ़ाते रहते हैं। हम इस संसार को माया कहते हुए भी भौतिक पदार्थों को अत्यधिक महत्व देते हैं! हम सांस्कृति एवं आध्यात्मिकता से प्राप्त होने वाले सूक्ष्म आनन्द की ओर ध्यान नहीं देते।
वास्तविक प्रसन्नता अधिकाधिक भौतिक वस्तुएं जुटाने में नहीं होती। इस दुनिया में जो लोग सच्चे अर्थों में प्रसन्न हैं, उनकी नजरों में जीवन, स्वास्थ्य तथा सुअवसर ही प्रसन्नता का कारण है। दूसरों के काम आना, स्पुतानिक के इस युग में रहना, दुनिया को और भी बेहतर बनाने हेतु प्रयासरत रहना आदि बातों में ही वास्तविक प्रसन्नता है। ्यदि हम अपने दैनिक जीवन में परेशान होना व चिन्ता करना त्याग दें, तो दीन-से-दीन व्यक्ति के लिए भी प्रसन्नता के अनेकानेक अवसर हैं।
प्रायः जिन लोगों का स्वास्थ्य गिर चुका है, उन्हें कोई न कोई चिन्ता घुन के समान खा रही होती है। ऐसे लोगों के मन, मस्तिष्क एवं खून में विष समा जाता है।चिन्ता विशेषतः घातक एवं हानिप्रद होती है। क्योंकि यह अन्य सभी भावनाओं पर छा जाती है। जब हमारा मन परेशान होता है तो हमारी सम्पूर्ण मानसिक क्रियाएं धुंधला जाती हैं। स्पष्टतः सोच पाना कठिन हो जाता है, किसी भी चीज से आनन्द नहीं उठा पाते, प्रत्येक कार्य में स्वयं को अक्षम पाते हैं। हमारा जीवन तो इतना सादा एवं सरल है, उसे हम अत्यधिक जटिल एवं दुरुह बना लेते हैं। यह ईर्ष्या एवं स्पर्धा हमें क्यों हो कि जो दूसरों के पास है, वही हमारे पास भी होना चाहिये?
वास्तव में हम सभी पैसे के दास इसलिए बने हुए हैं कि उससे हम भी वे सभी वस्तुएं खरीद सकते हैं जो कि हमें दूसरों के पास नजर आती हैं। हमारे जीवन में चिन्ताओं का एक बड़ा कारण झूठी मान-प्रतिष्ठा भी है। सदैव हम यही चाहते हैं कि हम दूसरों से अधिक महंगी घड़ी बांधें, दूसरों वे अधिक कीमती सूट पहनें, ताकि देखने वाले हमें हमारी हैसियत से अधिक धनवान समझें ।हमें उन वस्तुओं का अभाव उतना परेशान नहीं करता, जितना कि उनके न होने का अहसास करता है। कहने का अभिप्राय यह है कि दूसरों की दृष्टि में धनवान जंचना चिन्ता का एक प्रमुख कारण है।
ये लोगों की नजरें ही है जो कि हमें इतनी महंगी साबित होती हैं। हमें दूसरों के सुख साधनों को देखकर लालायित नहीं होना चाहिए बल्कि इस बात पर विचार करना चाहिए कि उत्त व्यक्ति ने इतने थोड़े समय में संघर्षों से जूझमकर किस प्रकार सुख-समृद्धि के साधनों को जुटाया है।उद्यमी एवं कर्त्तव्यपरायण लोगों के जीवन को आदर्श मानकर ही हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। सन्त पुरुष कहता है, “मैं चिन्ता नहीं करता, क्योंकि जिसकी मैं चिन्ता करूं,वह शायद होगा नहीं तथा जो होने वाला है, उसे मैं चिन्ता करके रोक नहीं सकता।” मनुष्य की अधिकांश चिन्ताओं का कारण यह है कि हम भौतिक सुख एवं विलासिता की आकांक्षा करते हैं।
हमने जीवन के तमाम आदर्शों को भुलाकर पैसे को ही अपना भगवान मान लिया है। यह पैसा ही समस्त चिन्ताओं का कारण है।अगर हम चाहते हैं कि हमारे जीवन में किसी भी प्रकार का अभाव न हो, हमारा जीवन सुखमय गुजरे तथा यदि हम जीवन में आमे बढ़ने की कला सीखना चाहते हैंतो हमें अपने वर्तमान को संवारने के लिए आने वाले कल की चिन्ता को अपने दिमाग से निकालना होगा। एक बार किसी व्यक्ति की आंख पर चोट लग गयी।
वह यही सोचकर दो रातों तक भयंकर पीड़ा से कराहता रहा कि अब न जाने क्या होगा। वह पड़ा-पड़ा सोचता रहा कि अस्पताल में मेरी आंख का ऑपरेशन हो रहा है, शायद वह निकलवानी पड़े।उसे ऐसा लगा कि धीरे-धीरे दूसरी आंख भी प्रभावित हो रही है। इस प्रकार उसने खुद को बिल्कुल अंधा समझ लिया। वह अब सोचने लगा कि शायद मैं पागल हो जाऊंगा।इस घटना के कुछ दिन बाद जब मैंने उसे एक गली में देखा और उसकी आंख के विषय में चर्चा की तो उसने बताया अब तो मैं काफी ठीक हूं, चिंगारी पड़ जाने से ही पपोटा जरा सूज गया था। सी धटना*को बढ़ा-बढ़ाकर सोचने लग जाते
हैं जो कि हमारी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता को क्षीण करती है। हम परिशितियों का मुकाबला करने से पूर्व ही स्वयं को कायर एवं असहाय समझने लगते हैं। विद्वानों का कहना है कि कायर मृत्यु से पूर्व भी कई बार मरा करते हैं।इसी प्रकार इसमें से जो लोग यह सोचते रहते हैं कि बेटी के विवाह के लिये रुपया कहां से आयेगा, मकान का किराया कैसे दे पायेंगे, वे अपने मन की शान्ति को भंग कर देते हैं।
कल की चिन्ता उनकी गर्दन पर आज ही सवार हो जाती है तथा जीवन-भर पीछा नहीं छोड़ती । अतः हमें चाहिए कि कल की व्यर्थ ही चिन्ता त्यागकर आज के प्रत्येक पल का भरपूर आनंद उठाये।