आदर्श व्यक्तित्व

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आज संसार की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि संपूर्ण मानव जाति सभ्य हो.। अपनी विराट सभ्यता के लिए हमारी आवश्यकता है कि आने वाले स्त्री पुरुषों का शरीर तो सुसंगत हो ही, उनकी भावनाएं भी मानवीय हों ।
आदर्श : व्यक्तित्व और उत्तम स्वास्थ्य से उत्तम और कया हो सकता है? हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों से हर साल हजारों छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करके निकलते हैं। इन संस्थानों का उद्देश्य है कि वे अपने छात्रों को विराट व्यक्तित्व, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की शिक्षा दें।  लेकिन ये छात्र विराट   वृक्षों के बजाय क्षणभंगुर पंखुड़ियां बन जाते हैं, विवेक का उपयोग करने के . बजाय रट्टू तोते बन जाते हैं, आत्मनिर्भर बनने के बजाय दूसरों का सहारा तलाशते हैं, दृढ़ होने के बजाय अस्वस्थ हो जाते हैं, सबलता के बजाय दुर्बलता अपनाते है, तनने के बजाय झुक जाते हैं। “इतने सारे संभावनाशील युवा लेकिन संपूर्ण व्यक्ति एक भी नहीं।
सम्पूर्ण शिक्षा और अनुशासन के लिए प्रथम आवश्यकता है. मानव को ‘ श्रेष्ठ काष्ठ बनाने की। यह काष्ठ भव्य और सुगठित वृक्षों से लिया जाना चाहिए। ऐसे काष्ठ से ही आप मस्तूल या पियानो बना सकते हैं, या उसे महीन नक्काशी में ढाल सकते हैं। परंतु सर्वप्रथम उसे काष्ठ ही होना पड़ेगा।  समय और घैर्य ही अंकुर को एक विशालकाय वृक्ष में तब्दील करते हैं। इसी प्रकाः अनुशासन, शिक्षा और अनुभव शिशु को दिमागी नैतिक और शारीरिक मानव… रूपी काष्ठ में बदल देते हैं।
यह घटना सन्‌ 1750 की है। उत्तरी वर्जीनियाई जंगलों में सर्वेक्षकों का… एक दल रात्रि को भोजन कर रहा था। अचानक एक स्त्री की कार चीखें ने उन्हें हत्प्ज्न कर दिया। स्त्री रह रहकर बड़े जोर से चीख रही थी [सर्वेक्षक दल के सदस्य इस चीख का कारण जानने को तुरंत पेड़ों के चारों तरफ बिखर गए।
“ओह, सर! आप मेरी सहायता अवश्य करेंगे ।” उस स्त्री ने एक सर्वेक्षक को देखते ही कहा। वह सर्वेक्षक वैसे तो अट्ठारह वर्ष का था लेकिन हक बोलने में भरा पूरा आदमी लगता था। युवक ने पूछा–“आप क्या चाहती औरत ने उत्तर दिया-“इन लोगों से कहो कि ये मुझे छोड़ दें। मेरा बेटा डूब रहा है। ये लोग मुझे उसे बचाने नहीं दे रहे हैं।”
“यह पागलपन है, वह पानी में डूब जाएगी ।” उसे पकड़कर खड़े आदमियों में से एक ने कहा-“तेज लहरें उसे क्षणभर में लील जाएंगी।”

 

सर्वेक्षक नौजवान ने तुरंत अपना कोट उतारा। क्षणभर के लिए उसने जलधारा की गति और चट्टानों को देखा और जैसे ही उसकी नजर लड़के के कपड़ों पर पड़ी, वह तत्काल अथाह जलराशि में कूद पड़ा। “ईश्वर का शुक्र है। अब वह मेरे बेटे, को बचा लेगा।” पीड़ित मां ने करुण भरे स्वर में कहा।
सभी लोग चट्टानों पर चढ़कर उफनती नदी को देखने लगे । सबकी नजरें उस नौजवान पर टिकी थीं। वह तेज लहरों और भवरों से जूझ रहा था। यूं लगता था कि वह लहरों के जोर से सामनेवाली चट्टान से टकराकर टुकड़े टुकड़े हो जाएगा। उस चट्टान से प्रचंड रफ्तार से टकराकर पानी झाग उत्पन्न कर रहा था। कभी लगता था कि वह भंवर में फंस जाएगा जिससे बचना नामुमकिन था।
 लड़का दो बार नजरों से ओझल हो चुका था। तीसरी बार जब वह दिखाई दिया तो वह नदी के सबसे खतरनाक भाग के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था। यहां पानी का बहाव बेहद तेज था। इस हिस्से में जाने की कभी किसी ने हिम्मत नहीं की थी।
नौजवान ने अपनी कोशिशें और तेज कर दीं। वह तीन बार लड़के के नजदीक पहुंचा मगर जैसे ही वह उसे पकड़नेवाला होता, लड़का उसके हाथों से और दूर हो जाता। उसने आखिरी प्रयास किया; लड़का उसके दाएं हाथ की मजबूत पकड़ में आ चुका था।
    लेकिन उसके बाद देखने वालों के  कंठों से भयानक चीख निकल पड़ी क्योंकि एक प्रचंड लहर ने उन दोनों को अपनी आगोश में समेट लिया था और वे उस अथाह जलराशि में गुम हो गए। “वेरहे!” क्षणभर बाद मां फिर चिल्लाई। प्रसन्‍नता के आवेग में वह मानो प्रलाप कर. रही थी, “देखो, वे ठीक हैं! हे प्रभु, तेरा लाख लाख शुक्र है। कुछ क्षण पश्चात्‌ लड़के को थामे हुए नौजवान नदी के उस हिसे में पहुंच गया जहां जलधारा कुछ शांत थी। जब दोनों किनारे पर पहुंचे तो उनके मित्रों ने उन्हें सुरक्षित बाहर निकलने में सहायता की ।
 लड़का अचेत हो चुका था लेकिन जीवित था। उसे बचाने के प्रयास में नौजवान थककर चूर हो चुका था। “भगवान तुम्हारी साध अवश्य पूरी करेगा।” औरत ने कोमल स्वर में कहा, “आज के तुम्हारे उपकार के बदले वह तुम्हें अवश्य पुरस्कृत करेगा और मेरे जैसे हजारों लोगों की दुआएं सदा तुम्हारे साथ रहेंगी।” यह युवक जॉर्ज वॉशिंगटन था, जो आगे चलकर अमेरिका का राष्ट्रपति बना।
एक साहसी व्यक्ति निर्भीकता का उदाहरण होता हैं उसका प्रभाव बड़ा चुंबकीय होता है। लोग मृत्यु तक उसका अनुसरण करते हैं। जिन्होंने साहस से काम लिया है, उन्होंने अपने जीवन के उत्कर्ष पर पहुंचने से पूर्व ही दुनिया को झकझोर डाला है। पहल करने की हिम्मत और धैर्य ने युवाओं को भी किन शिखरों पर पहुंचने की शक्ति दी है, यह देखकर आश्चर्य होता है।  सिकंदर बीस वर्ष की आयु में राजगद्दी पर पहुंचा। जब वह मात्र तैंतीस वर्ष की अवस्था में मरा, तब तक वह संपूर्ण ज्ञात साम्राज्यों को जीत चुका था।
 जूलियस सीजर ने आठ सौ शहरों और तीन सौ राष्ट्रों को जीतने के अतिरिक्त तीस लाख लोगों को पराजित किया था। वह श्रेष्ठ वक्ता और महान कूटनीतिज्ञ था। इसके बावजूद वह अभी युवा ही था।जॉर्ज वाशिंगटन को उननीस वर्ष की अल्पायु में सेना का एडजुटेंट जनरल नियुक्त किया गया और इक्कीश वर्ष की अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते उसे फ्रांसीसियों के साथ वार्ता के लिए राजदूत नियुक्त किया गया।जब कर्नल के रूप में उसने प्रथम युद्ध जीता तो उसकी आयु मात्र बाईस वर्ष थी।
शेक्सपीयर का कथन है–“वह शहद का अधिकारी नहीं है जो छत्ते से सिर्फ इसलिए दूर रहता है क्योंकि मधुमक्खियों के डंक बड़े तीखे होते हैं।” अनेक योग्य नौजवान सिर्फ इसलिए अपने अथवा दुनिया के लिए कुछ महत्व कार्य नहीं कर सके क्योंकि वे शुरुआत करने का साहस ही नहीं जुटा सके। ‘
“इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज” के प्रकाशक इंग्राम ने जब इंग्लैंड के नॉटिंघम शहर में एक मामूली अखबारवाले के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया तो वह अपने प्रत्येक ग्राहक को संतुष्ट रखने के लिए दस दस किलोमीटर तक चलकर अखबार पहुंचाते थे।
 क्या ऐसे युवक को देखकर किसी को उसकी सफलता पर संदेह हो सकता है? एक बार वह रात को दो बजे उठे और लंदन तक पैदल जाकर अखबार लाए क्‍योंकि उस दिन डाक के जरिये अखबार नहीं आनेवाले थे।उनका संकल्प था कि ग्राहकों को जरा भी शिकायत का मौका न मिले। यही
वह चाह है जो राह खोजने में सफल होती है . जीवन में इतनी ऊंची बात शायद ही कहीं देखने को मिले जैसी युवा
हेनरी फॉसेट ने अपने पिता से कही थी। हेनरी फॉसेट ग्लैडस्टोन के शासन में अंतिम पोस्टमास्टर जनरल थे। जब अपने पिता के शिकार के शौक के चलते उनकी गोली से अपनी दोनों आंखें गंवा बैठे तो उन्होंने शोकाग्रस्त पिता से कहा था-“आप दुखी न हों।
  मेरा अंधापन मेरी सफलता को बाधित नहीं कर सकता ।” इसके कई वर्ष पश्चात्‌, लंदन की सड़कों पर एक कारुणिक दृश्य वहां के लोगों के लिए रोज की घटना बन गया। हेनरी फॉसेट, सांसद को उसकी बेटी मार्ग दिखाते हुए हर जगह घुमाती दिखती थी।वह अपने बहादुर पिता की मार्गदर्शक थी । कल्पना कीजिए, एक नवयुवक जो अभी अपने सक्रिय जीवन की दहलीज पर ही पहुंचा है, वह अचानक किसी हादसे में अपनी दोनों आंखें गंवा बैठा और फिर भी, केवल उत्साह और दृढ़ संकल्प के दम पर हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों की पंक्ति में जा बैठा।
 अपने पिता की आंख यह बहादुर बेटी भी उत्साह और संकल्प की एक श्रेष्ठ उदाहरण थी। वह ऑक्फोर्ड विश्वविद्यालय के कई सौ वर्षों के इतिहास में पहली महिला थी जो बाद में वरिष्ठ गणितज्ञ की प्रतिष्ठित उपाधि से सुशोभित हुई। संपूर्ण आधुनिक जगत में यह एक अनुपम उपलब्धि थी और इसने सारे संसार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। यह पद तब तक न केवल किसी भी महिला को नहीं मिला था बल्कि कुछ अपवादों को छोड़कर पुरुषों में भी केवल उन्हें ही मिला था जो बाद में प्रतिष्ठा के शिखरों पर पहुंचे थे।
 यह सत्य है कि सफलता के लिए दृढ़ संकल्प अनिवार्य है। यह भी सत्य है कि यदि अन्य सब चीजें दूसरों के समान ही हों और इच्छाशक्ति अधिक हो तो सफलता भी अधिक ठोस और संपूर्ण होगी।परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि हालात या वातावरण की विशिष्टताओं का कोई महत्त्व ही नहीं है कि मात्र दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर कोई भी व्यक्ति बोनापार्ट, वेब्सटर, बीचर या लिंकन बन जाएगा।अपने निश्चय और अटल इरादे को विवेक की कसौटी ‘पर कसने के साथ-साथ ज्ञान और व्यावहारिक समझ के तराजू पर तौलना भी . जरूरी है।
 ‘किसी भी जड़ वास्तविकता को मात्र जड़ इच्छाशक्ति की सहायता से हीं बदलना असंभव है। हमें मात्र इतना अधिकार है कि हम आशा करें कि हम अपनी: क्षमताओं, शक्ति और सहनशीलता के सहारे वह सब कर सकते हैंजिसे कर पाना हमारे लिए सम्भव है। बाधाएं सदैव हमारी प्रगति को किसी-न-किसी दिशा में बाधित अवश्य करती हैं लेकिन हम आशा कर सकते हैं कि हर दिशा में हम इन बाधाओं का सामना कर लेंगे। इस तरह हम पाएंगे
कि वे बाधाएं अभेद्य अथवा स्थायी नहीं हैं। दृढ़ इच्छाशक्तिा, बुद्धिमता और धैर्य से युक्त व्यक्ति अवश्य मार्ग खोज या बना लेगा, जहां उसे खोज पाना अथवा बनाना संभव है। प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि जहां दृढ़ चाह होती है, वहां भी हमेशा राह नहीं मिलती-कि श्रम ही हर सूरत में हर चीज को नहीं जीत सकता है-कि ऐसी चीजें भी हैं जो दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति के लिए भी असंभव है-कि कोई भी अपने जीवन को ठीक अपनी इच्छा के अनुरूप नहीं ढाल सकता-कि हमारी विशिष्ट प्रकृति में ही कई ऐसी सीमाएं होती हैं जिन्हें कोई भी इच्छाशक्ति या उद्यम जीत नहीं सकता।
संकल्प के धनी व्यक्ति के सामने संसार हमेशा रास्ता छोड़ देता है। लिंकन की दृढ़ता ने उसका मार्ग प्रशस्‍्त किया। जब उसके दोस्तों ने उसे सीनेट के लिए उम्मीदवार बनाया तो उसके विरोधियों ने उसकी जमकर हँसी उड़ायी ।जब अपने चुनाव अभियान पर निकलता था तो उसके पास अच्छे कपड़े भी नहीं होते थे। उसके कपड़े बेहद घिसे-पिटे और तंग होते थे। संसार में उसके पास चरित्र और दोस्तों के अलावा कुछ भी नहीं था।
जीवन में सफलता काफी हद तक इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है और जो चीज भी इसे कमजोर करती है, वह सफलता की संभावना को कमजोर करती है। इच्छाशक्ति के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता हैं हम सबके अंदर जो चीज सबसे सरलता से अपनी जगह बना लेती है, वह इच्छा ही है।
ऐसे में निर्णायक और दृढ़ इच्छा करना सीखा जा सकता है। इस प्रकार आप अपने जीवन को स्थायित्व दे सकते हैं। इसके बाद आपका जीवन टूटे पत्ते की तरह यहां से वहां उड़ता नहीं फिरेगा । आदमी में प्रतिभा का अभाव नहीं होता, अभाव होता है श्रम करने का, इच्छा और उद्देश्य का। । नकारापन और अक्षमता के सहारे वास्तविक सफलता के शिखर तक पहुंचने की संभावना बेहद कम है।यदि हम शब्दकोश के शब्दों को फर्श पर बिखेर दें तो उनके गिरने से किसी महाकाव्य के पैदा होने की जितनी संभावना है, ठीक उतनी ही संभावना गलत आदमी के सफल होने की भी होती है।
 भाग्य उन्हीं पर कृपालु होता है जो बांहे चढ़ाकर अपने कंधों को कष्ट देने के लिए तैयार रहते हैं-जो कठिनाई, विषमता और अथक परिश्रम से नहीं . घबराते। भाग्य से उन्हें ही सहायता मिलती है जो अपने दिमाग और बुद्धि का उपयोग करने पर भरोसा रखते हैं न कि सहारे के लिए मुंह ताकते है

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