हम होंगे कामयाब

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हम होंगे कामयाब

 

किभी व्यक्ति के चारों ओर प्रसन्‍नता और समृद्धि के अनेक साधन मौजूद हैं। बुद्धिमान व्यक्ति ही इन्हें तलाशने की कोशिश करते हैं और तब वे प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक स्थान पर प्रसन्नता खोज लेते हैं।गेटे ने कहा है-“प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन कम से-कम एक छोटा सा गीत जरूर सुनना चाहिए। एक उत्तम कविता जरूर पढ़नी चाहिए, एक सुंदर चित्र अवश्य देखना चाहिए और कुछ मीठे बोल भी अवश्य बोलने चाहिए।

 

जब यह सब प्रसन्‍नतादायक प्रतीत होने लगे तो उसे चाहिए कि इनके द्वारा दूसरों को भी प्रसन्‍न करने का प्रयास करे।” आप अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भरसक प्रयास कर रहे हों, तब भी अपने अंदर के संगीत और कविता को दबने मत दीजिए नियमपूर्वक चिंतन के द्वारा आप भी अपने मन में सुंदर से सुंदर चित्रों के दर्शन कर सकते हैं, क्योंकि जिसके पास बुद्धि जैसी संपत्ति है, वह नित्य अपने मनोरंजन की व्यवस्था करके आनंद प्राप्त कर सकता है ।

 

सुंदर गुणों के साथ मधुर स्वभाव का सहयोग, स्पष्ट निर्णय तथा सामंजस्यपूर्ण कार्यशक्ति जीवन को पूर्ण बना देती है। सवेरे जब आप सोकर उठें और ऐसा अनुभव हो कि आज कोई अप्रिय घटना होने वाली है तो उस समय दृढ़ निश्चय करें कि चाहे कुछ भी हो, आज के दिन को प्रसन्‍नता और उल्लास का दिन बनाकर ही रहेंगे।उसका परिणाम यहं:होगा कि संभावित असफलता और संकट आपके निकट नहीं आएंगे। आपका दिन व्यर्थ नष्ट नहीं होगा। आप निराशा में फंसकर जितना काम कर पाते, उससे दो गुना काम जरूर कर लेंगे। व्यक्ति को दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए कि क्रोध, ईर्ष्या, निराशा, खिननता और चिंता को भयंकर शत्रु समझकंर अपने जीवन से बाहर निकाल देंगे। जो व्यक्ति इस प्रकार इन पर विजयप्राप्त कर अपनी इच्छाशक्ति दृढ़ बना सकता है, वह अपने सभी कार्य सरलतापूर्वक कर लेता है।

 

अगर किसी कारणवश मन खिन्‍न हो जाए तो प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए खूब हंसिए और मुस्कुराइए। जोर-जोर से खिलखिलाकर हंसने का प्रयल कीजिए।हंसी-खुशी की बातें कीजिए। मन में यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि हमें किसी भी जटिल परिस्थिति में अपना संयम खोये बगैर उन परित्थिति का डटकर मुकाबला करना है और प्रसन्नता प्राप्त करनी है। हमेशा कष्टों की उपेक्षा कीजिए, जब हम उनकी उपेक्षा करते हैं, अपने आपको उनसे अलग क़रते हैं, जब उन्हें भुला देते हैं, उनके स्थान पर अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों और वस्तुओं में अपना मन लगा देते हैं, तब वे विचार हमारे लिए कष्टप्रद नहीं रहते। जब हम उन्हें हमेशा तुच्छ मानते हैं, तब वे धीरे-धीरे कमजोर होकर विलुप्त हो जाते हैं।

 

अपने मन में विपत्तियों का मुकाबला करने की शक्ति पैदा करना एक उत्तम गुण है। जब आप जानते हैं कि क्या करना चाहिए तो आपका कर्त्तवय हो जाता है कि उसे कठिन समझते हुए भी जरूर करें। इसलिए अपने मन को वश में रखने की शक्ति प्राप्त कीजिए, ताकि हीन चित्तवृत्तियां आपको लक्ष्य से भ्रष्ट न कर सकें। कितनी भी मुश्किलें हों, अपने विचारों पर दृढ़ रहिए । आपकी विजय-पताका फहराएगी और आप अपने उद्देश्य में सफल होंगे। |

 

व्यक्ति जिस बात का चिंतन और मनन करता है और जिन उद्देश्यों की ‘ पूर्ति का संकल्प करता है, उनमें उसे मानसिक निश्चय द्वारा ही सफलता प्राप्त होती है।मन शरीर को जो भी कार्य करने का आदेश देता है, शरीर उसकी अवहेलना नहीं कर सकता। यदि व्यक्ति में ऐसा निश्चय हो तो उसकी समस्त शारीरिक दुर्बलताएं नष्ट हो जाती हैं। यह बात देखने में भले ही विचित्र लगे, लेकिन अनुभव द्वारा यह बिल्कुल सही पाई गई है।

सुख और ऐश्वर्य के कितने भी साधन उपलब्ध क्‍यों न हों, परंतु यह शक्ति अभी भी पूर्णतया समाप्त नहीं हुई | हां, यह अवश्य हुआ है कि आधुनिक उपलब्ध सुविधाओं के कारण यह शक्ति कुछ मंद पड़ गई है।आज भी ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं कि भीषण रोग से पीड़ित कोई व्यक्ति  भारी उत्तरदायित्व संभालने के लिए मजबूर हो जाता है तो सारे परिवार का  बोझ संभाल लेता है।

 

पिता अथवा बड़े भाई क्री भृत्यु पर उत्तराधिकार प्राप्त  करने वाला व्यक्ति अपने कर्त्तव्य पालन लिए स्वयं को पूर्ण स्वस्थ अनुभव करने लगता है। दृढ़ संकल्प का ही दूसरा नाम सफलता है.और व्यक्ति का मन ही इन संकल्पों का स्त्रोत है। इसलिए आपको चाहिए कि मन में किसी प्रकार की दुर्बलता न आने दें, उसमें जंग न लगने दें । यदि मन प्रफुल्लित रहेगा तो दुर्बल शरीर भी कठिन से कठिन कार्य करने में समर्थ हो जाता है। उद्देश्य प्राप्ति के लिए एकाग्र चिंतन अत्यन्त आवश्यक है। इधर उधर के अनावश्यक कार्यों में लगकर व्यक्ति अपनी क्षमताएं ही नष्ट करता है। यदि व्यक्ति का आदर्श स्पष्ट रूप से उसके सामने बना रहे तो उसे निरंतर प्रेरणा प्राप्त होती है।

 

अतः समृद्ध बनने के लिए जरूरी है कि हमारे मन में निरंतर समृद्ध बनने के विचार विद्यमान हों । ये विचार आदर्श की ओर बढ़ने को प्रेरित करेंगे और हम सजग एवं जागरुक रहकर आदर्श व लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहेंगे। सजग व्यक्ति कभी अवसर नहीं गंवाता। सृष्टि से संबंध और तादात्मय जिसने बना रखा है, उसे ऐसा अनुभव होता है कि प्रकृति उसका सहयोग कर रही है। वह स्वयं को समृद्ध अनुभव करता है, क्योंकि प्रकृति के प्रति उसका दृष्टिकोण मित्रवत होता है। वह विराट सत्ता का अंश मात्र बन जाता है। यही भाव व्यक्ति में शक्ति और आत्मविश्वास उत्पन्न करते हैं।

 

अगर आपके मन में संकीर्णता है तो आपके विचार संकीर्ण होंगे | संकीर्णता के कारण ही मानसिक रुढ़िवादिता को प्रोत्साहन मिलता है। संकीर्ण विचारों वाला व्यक्ति स्वयं को इस संसार से निकालकर एक अंधेरे क॒एं में कैद कर लेता हैं। उस के जीवन, उसके उद्देश्य तथा अन्य गतिविधियां सीमित क्षेत्रों में बंधकर रह जाती हैं। कोल्हू के बैल की भांति आंखों पर पट्टी बांधकर लगातार चलने का यह मतलब नहीं कि आप बहुत आगे बढ़ रहे हैं बल्कि आप जहां के तहां रहते हैं, आउन्नत विचारों से सम्बंध टूट जाता है और एक दिन ऐसा आता है, जब समय आपसे आगे निकल जाता है और आप किंकर्त्तव्यविमूढ़ से खड़े रह जाते हैं।

 

हमें अपने जीवन से वही कुछ प्राप्त होता है, जो हम उससे चाहते हैं। हमारा वातावरण, हमारी परिस्थितियां, हमारा व्यक्तित्व आदि सभी कुछ हमारे अपने विचारों के अनुरूप ही स्वरूप धारण करते हैं। जो व्यक्ति निरन्तर गरीबी के भय से आक्रांत रहता है, वह स्वतः ही निकम्मा हो जाता हैं जो सदैव यही सोचता है कि वह अभागा है, संसार की सुख-समृद्धि उसके लिए नहीं बनी तो.उस्ले समृद्धि किस तर॒ह प्राप्त होगी? स्वास्थ्य, ईश्वर में विश्वास, आस्था और उद्यम में कमी के कारंण ही व्यक्ति सदैव पद-दलित बना रहता है।

 

जो “ व्यक्ति यह समझते हैं.कि समृद्धि हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे प्राप्तकरने का कोई भी प्रयत्न क्रंभी व्यर्थ नहीं होगा, समृद्धि एक-न-एक दिन अवश्य : उनके:कदम चूमती है। कुछ व्यक्त समझते हैं कि विचारों का कोई महत्त्व नहीं होता। आपने अनेक व्यक्तियों को यह कहते सुना भी होगा कि सोचने-विचारने से क्या होता है, जो होना होगा, वह तो स्वयं ही हो जाएगा। ऐसे व्यक्ति यह नहीं जानते  कि व्यक्ति के विचार ही उसके भाग्य का निर्माण करते हैं।

 

शरीर तो पशु-पक्षियों के पास भी होता है, लेकिन उनमें सभ्यता और संस्कृति का विकास नहीं। मात्र मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसने इस पृथ्वी पर इतनी उन्‍नति की है और आप. यह अनुमान कर सकते हैं कि यह उन्नति कैसे संभव हो सकी । इसका स्पष्ट उत्तर है-विचारों से, व्यक्ति की कल्पना से और व्यक्ति के उत्साह से। अक्सर ऐसा हुआ करता है कि लोग अफवाहें बड़े चाव से सुनते हैं और उन पर यकीन करते हैं। इस प्रकार काल्पनिक कहानियां अपने बुरे प्रभाव के कारण अनेक बार वास्तविकता में बदल जाती हैं। अनियमित तथा अनियंत्रित विचार इस प्रकार की कल्पना के स्वरूप को और भी भयंकर बना देते हैं।

 

इसका नतीजा यह होता है कि व्यक्ति मनगढ़ंत कल्पना का शिकार हो जाता है। जो व्यक्ति सोचता है कि वह किसी दुसाध्य रोग से ग्रस्त है, वह केवल मन में विकारों को ही जन्म देता है। इस तरह के काल्पनिक एवं दूषित विचार हमारे शरीर की सभी क्रियाओं में गड़बड़ी पैदा करते हैं, उन्हें असंतुलित बनाते हैं। इस तरह के काल्पनिक भय से बचने का उपाय केवल मानसिक संतुलन है। जिस शरीर में स्वस्थ, संतुलित और रोगरहित मस्तिष्क होता है, वह कभी रोगी नहीं होता।  जिन व्यक्तियों में स्वतंत्र विचार शक्ति होती है, वे अंधकार में भी प्रकाश खोज लेते हैं। ऐसे व्यक्तियों से बातचीत करने पर संतोष का अनुभव होता हैं।

 

दूसरे प्रकार के व्यक्ति वे होते हैं, जिनका व्यक्तित्व उलटे दर्पण के समान होता है। ऐसी स्थिति में जो व्यक्ति उनके संपर्क में आता है, वह उन्हीं की तरह निराशा और हताशा महसूस करता है। दुख-दर्द की स्थिति में हमें ऐसे लोगों से नहीं मिलना चाहिए। वस्तुतः ऐसे लोगों के चारों ओर एक अनिश्चित चक्र चलता है। वे जहां भी जाते हैं, उनके विचारों का बहुत प्रभाव पड़ता है। इससे बचने का उपाय यही है कि मन में दूषित और अधकचरे विचार न आने दिए जाएं। जितना भी हो सके उनसे बचे रहें।

 

 

मनुष्य मौलिक रूप से सामाजिक प्राणी है। इसफा मतलब यह है वह मात्र अपने विचारों से नहीं वल्कि आसपास के विचारों से भी प्रभावित – होता है। चारों ओर का वातावरण, परंपराएं, व्यक्ति की संगति आदि सभी बातें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं।इनकी उपेक्षा न करते हुए, यड़ ध्यान में रखना चाहिए कि हम दूसरों से अनेक नई बातें सीख सकते हैं। वस्तुतः अन्य व्यक्तियों से सीखना जरूरी भी है, क्‍योंकि हमारा निर्माण ही इस प्रकार हुआ है कि हम अन्य व्यक्तियों से अलग-थलग नहीं रह सकते, उनसे अलग रहकर अपना जीवन नहीं गुजार सकते। अतः व्यक्ति को चाहिए कि वह सीखना कभी बंद न करे। दूसरों से सीखकर अपने जीवन को समृद्ध बनाया जा सकता है।

 

यह भली भांति समझ लेना चाहिए कि निराशापूर्ण विचार शरीर के पुनर्निर्माण में भयंकर बाधा डालते हैं। इस तरह के विचार जितने अधिक होंगे, शरीर का विकास रुकता चला जाएगा। स्वार्थ, लोभ, मोह और अन्य प्रकार के व्यसन बुढ़ापे के मित्र नहीं हैं। अगर आप इनमें से किसी को भी अपनाते हैं तो बुढ़ापा साथ नहीं छोड़ेगा। जीवन में निराशा से बढ़कर यौवन का अन्य कोई शत्रु नहीं।जिस निराशावादी व्यक्ति ने जीवन को खंडहर के समान समझ लिया, वह न आगे बढ़ सकता है, न यौवन का सुख ही भोग सकता है। उसकी स्थिति उस अंधे कैदी की तरह होती है, जिसके लिए प्रसन्नता स्वप्न मात्र रह जाती है।

 

वस्तुतः उसने अपनी प्रसन्नता की हत्या स्वयं की होती हैं धरती पर जितनी सुख-सम्पत्ति, धन-दौलत है, वह इस तरह के व्यक्ति के लिए व्यर्थ होती है। ऐसे व्यक्ति असमय ही काल के मुंह में चले जाते हैं। सफल लोगों का जीवन इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि युवा बने रहने के लिए मनुष्य के मन में आशा की ज्योति जलती रहनी चाहिए, अर्थात्‌ मनुष्य का आशवादी होना अत्यंत आवश्यक है। जिस मनुष्य को अपने ऊपर विश्वास होता है, वह अपनी शक्तियों की उसी तरह वश में कर लेता है, जिस तरह चतुर सारथी उच्छुंखल घोड़ों को लगाम लगाकर वश में करता है। ऐसे व्यक्ति अपना मार्ग पहचान लेते हैं और उसी पर चलते हैं। अतः उन्हें इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। महत्त्वकांक्षा स्वयं आपका पथ-प्रदर्शन करती है। जो व्यक्ति बड़े काम करना चाहते हैं, वे बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाते हैं।

 

ऐसे महत्त्वकांक्षी व्यक्ति अपूर्व उदार होते हैं। उन्हें देखते ही लगता है, मानो विजय उन्हीं को प्राप्त होने वाली है, वह उन्हीं का वरण करने वाली है। जीवन की समस्त उपलब्धियों का स्त्रोत एक कामना ही होती है। जिस कामना अथवा इच्छा को आप दिन-रात अपने संग रखेंगे, उससे अनुप्राणित “ .. रहेंगे, वह शनः-शनैः आपके व्यक्तित्व का अंग बन जाएगी ।  निरंतर प्रयलशील ., “ रहने से कोई भी इच्छित पदार्थ दूर नहीं रहता। यह बात प्रसिद्ध है कि चाह ‘. में बड़ी आकर्षण शक्ति होती है+-जब चाह अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाती है तो इस आ्कर्षण’के क्षोर से बंधी हुई प्रत्येक वस्तु आपकी ओर खिंची चली आती है। जब आप किसी व्यक्ति को किसी विशिष्ट क्षेत्र में सफल होता देखें

 

तो यह समझना चाहिए कि उसका अब तक का सम्पूर्ण अस्तित्व ही उसकी सफलता से संबंधित रहा है। अनमने होकर काम करने से गुजारा तो हो सकता है, लेकिन समृद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती ।अपनी शक्तियों का सही मूल्यांकन करने के पश्चात्‌ आसपास के वातावरण को अपने अनुरूप बनाने की कला का पहला पाठ आत्मविश्वास रूपी पाठशाला में ही प्राप्त होता है। मैं युवकों को मात्र एक ही मूल मंत्र देना चाहता हूं-“अपने आप पर भरोसा रखो, हमेशा यह बात स्मरण रखो कि तुम्हारे भीतर वह शक्ति है, जो एक बार जाग्रत होने पर तुम्हें न केवल ईमानदार, उद्यमी वरन सफल और सुसंस्कृत भी बना देगी।” इतनी दृढ़ और अदम्य आस्था बनाए रखना प्रत्येक मनुष्य के वश की बात नहीं।

 

कई बार निराशा इतनी ज्यादा होती है कि व्यक्ति कुछ निश्चय ही नहीं कर पाता कि वह क्‍या करे। ऐसी कठोर परिस्थितियों में उसका ईश्वर पर से ही विश्वास उठ जाता है, परंतु उस प्रभु ने हमारी आत्मा को वह शक्ति प्रदान की है, जो इन घोर संकटों में भी हतोत्साहित होने से बचा लेने में समर्थ होती है। यह आत्मसुझाव की शक्ति है। दूसरे शब्दों में इसे आत्मवार्ता भी कह सकते हैं। ड्राइफस भी आत्मसुझावों द्वारा अपनी आस्था को सहारा देकर भयंकर विपत्तियों में भी निराश नहीं हुआ। ड्राइफस को कुछ भ्रष्टाचारी अफसरों ने अपनी जान बचाने के लिए झूठे आरोप लगाकर जेल भिजवा दिया।

 

उसने जेल में अपनी निर्दोषता के लिए आवाज भी उठाई थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ड्राइफस के जेल से भागने के प्रयत्नों की अफवाह सैनिक जनरलों के पास पहुंची । सैनिक अधिकारियों ने पहरा और बढ़ा दिया।उसे भारी जंजीरों से बांधकर उसकी टांगों में लोहे का भार लटका दिया गया, लेकिन उसने शासकों द्वारा दी जाने वाली यातना का मुंहतोड़ जवाब देने का फैंसला किया । वह हमेशा यह बात दोहराता था कि मैं जिऊंगा, प्रत्येक स्थिति में जिऊंगा।अन्ततः एक दिन षड़यंत्र का राज खुल गया और ड्राइफस को रिहा कर दिया गया। प्रत्येक मानसिक प्रक्रिया की शरीर में अभिव्यक्ति होती है। यदि आप अपनी शारीरिक अभिव्यक्तियों को दोहराएं तो उनसे संबंधित विचार आपके मन में अपने आप आने लगेंगे।

 

 

एक बार दिखावे भर के लिए दांत पीसकर,. मुट्ठियां तानकर जोर से चिल्लाइए। ऐसा करते ही. आपको अपने आप क्रोध. आ जाएगा। कुछ लोग मन और शरीर दोनों पर निमंत्रण रखने में समर्थ होते हैं, दूसरे ऐसा नहीं कर सकते, परंतु एक बार असफंलं होने वाले लोगों को निराश नहीं होना चाहिए। बार-बार अपने आपको सुझाव देने से व्यक्तित्व की . वे तहें खुलने लगती हैं जिनमें व्यक्ति की प्रतिभाएं अब तक बंद थीं॥

 

आपको कुछ ऐसे व्यक्ति भी अवश्य मिले होंगे, जो हमेशा हंसते रहते हैं। उनका चेहरा सदैव खिला रहता है। उनको देखने से लगता है, मानो उनके लिए इस धरती पर दुख नाम की कोई चीज ही नहीं है। वे सदैव हंसते-खेलते नजर आएंमे।ऐसी बात नहीं कि इनके जीवन में कभी विपत्तियां आती ही नहीं, परंतु विपत्तियां भी इनके जीवन में अनुभव के रूप में जुड जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने शत्रुओं को क्षमा कर देने और दुखों को भूल जाने की कला से पूर्णतया परिचित होते हैं।

 

आशावादिता के कारण वे जीवन के उज्ज्वल पक्ष को ही देखते हैं। उनका मस्तिष्क हमेशा नियंत्रित रहता है और उनके विचार व्यवस्थित होते हैं। व्यवस्थाबद्ध-मस्तिष्क में अव्यवस्था का कूड़ा-कचरा भरने की गुंजाइश ही नहीं रहती। अरुचिपूर्ण विचारों से बचना और उनसे पूर्णतया मुक्ति पाना-यह दो अलग-अलग बातें हैं। यदि आपके मन में ईर्ष्यापूर्ण और गंदे विचार आते हैं तो उन्हें आत्मसुझाव द्वारा दूर करने की कोशिश कीजिए, अपने आपको समझाइए। दूसरों के प्रति दोष रखने से उनकी हानि हो या न हो, आपका मन तो पूर्णतया दूषित हो ही जाता है। दूषित मस्तिष्क आपका जीवन दूभर कर देगा। ऐसी स्थिति में आपको दूसरों से नफरत होने लगती है।

दूसरों से नफरत करते समय आप स्वयं नफरत की साक्षात प्रतिमा बन जाते हैं। क्या काजल की कोठरी में जाकर कोई बेदाग निकल सकता है? व्यक्तित्व का निर्माण विचारों से हमारे होता है। दृढ़ व्यक्तित्व वालों को ही सफलता प्राप्त होती है। इसलिए मन को केवल कुविचारों से ही मुक्त करना पर्याप्त नहीं, उनके स्थान पर उसमें उत्तम विचार भरना भी जरूरी है। यदि आप के विचार सुंदर होंगे तो आपका जीवन भी समृद्ध होगा।

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