दृढ संकल्प का महत्व

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दृढ़ इच्छाशक्ति का बल किसी भी इन्सान का कायाकल्प कर सकता है। हमारे सामने ऐसी अनेकों मिसाले है जिनमें विभिन्‍न स्त्री पुरुषों ने दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर खुद को अपमान, लाचारी, निर्धनता और दुर्भाग्य की गर्त से बाहर निकाल लिया।

 

 

स्वयं को कमजोर और नाकामयाब समझे जाने की चेतना के दंश के अनेक लोगों में वह दृढ़ता उत्पन्न की है जिसके सहारे वे उन लोगों से भी आगे निकल गए जो उनसे जलते थे…उन पर हंसते थे।न्यूटन, एडम क्‍लार्क, शेरिडान, वेलिंगटन, गोल्डस्मिथ, डॉक्टर . शामर्स, डिजराइली और अनेक लोगों के किस्से ठीक ऐसे ही हैं।

 

कुछ व्यक्ति तब तक अपने आपको भलीभांति पहचान ही नहीं पाते हैं, जब तक वे कठिनाइयों, विपत्तियों और असफलताओं तथा दूसरों की निंदा का सामना नहीं करते हैं।परीक्षा की घड़ी में वे और अधिक तपते हैं; असफलता उनकी सफलता की दहलीज बन जाती है।

 

 

यह पराजय ही है जो हड्डी को चकमक पत्थर के समान कठोर बनाती है; पराजय ही व्यक्ति को अपराजेय बनाती है। आज जो व्यक्ति सफलता के शिखर पर दिखाई देते हैं, उनकी सफलता में असफलता का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। इसी से उन्हें यंत्रणा और पीड़ा के बजाय स्वतंत्रता का स्पर्श मिला है।

 

चुनौतियां और लक्ष्य आलसी और निकम्मे मस्तिष्क में भी वह गुण और शक्तियां उत्पन्न कर देती हैं जिनके बारे में कभी किसी ने सोचा भी नहीं था। प्रायः हम देखते हैं कि अपने माता या पिता की मृत्यु के बाद या किसी बड़े प्रयास में असफलता के उपरांत अथवा और किसी दुर्घटना के कारण जब किसी नौजवान का सहारा छिन जाता है तो उसके अंदर विराट शक्तियां जाग्रत होती . हैं।

 

जीवन ने अनगिनत लोगों की सुषुप्त ज्वाला को भड़काया है। रॉबिन्सन क्रूस़ों जेल में ही लिखी गई थी। प्रोग्रेस नामक ग्रंथ का जन्म बैज्फोर्ड जेल में हुआ। सर वाल्टर रेले ने द हिस्टरी.ऑफ द वर्ल्ड की रचना अपने तेरह वर्षीय कारावास के दौरान की थी। लूथर ने बाइबल का अनुवाद वार्टवर्ग दुर्ग की कैद में किया था। दांते ने अपने जीवन के बीस वर्ष निर्वासन में गुजारे थे। उस समय उनको मृत्युदंड भी दिया जा चुका था।

 

प्रायः व्यक्ति अपने आपको तब तक पहचान ही नहीं सके, जब तक उनका सब कुछ नष्ट नहीं हो गया। कठिनाइयों ने उन्हें इसीलिए निर्वस्त्र किया है कि वे स्वयं को पहचान सकें। और कठिनाइयां ऐसे छेनी और हथौड़े हैं जो शक्तिशाली जीवन को सौंदर्य प्रदान करते हैं। पहाड़ों की निस्तब्धता मनुष्य की आहट से टूट जाती है।

 

विस्फोटों की मरज उनकी सदियों की शांति को भंग कर देती है। धूल का गुबार उसे बदरंग कर देता है मगर इसी से वे शानदार मूर्तियां बनती हैं जो सदियों तक चौराहों और घरों को शोभा देती हैं..जिनसे शानदार महलों के मेहराबों को गरिमा मिलती है।मुश्किलों से अपना बचाव करते जाने की आदत ने अनगिनत लोगों को कष्ट दिया है जबकि उसकी इच्छाओं को मौत की नींद सुला देनेवाली बिजली उसके अंधेरे जीवन में एक झरोखा खोल सकती है

 

जिससे झांककर वह स्वयं की झलक पा सकता था। उसकी सबसे प्रिय इच्छाएं तो कब्र की आगोश में चली जाती हैं लेकिन धैर्य, सहनशीलता और नवीन इच्छाओं की संभावना पैदा होने लगती है। सफलता के लिए आज भी जरूरी है कि व्यक्ति अपने मस्तिष्क की संपूर्ण ऊर्जाओं को एक निश्चित लक्ष्य पर केंद्रित कर दे।साथ ही, उसमें उद्देश्य के प्रति इतनी प्रचंड लालसा भी होनी चाहिए कि वह मृत्यु से भी भयभीत न हो। कोई भी ऐसी भावना जो उसे उसके लक्ष्य से विचलित करती हो, उसे कुचलता चले।

 

जिस आदमी के पास मात्र एक ही गुण है-यदि वह अपनी सारी क्षमताओं को उसी गुण पर केंद्रित कर दे तो उस व्यक्ति से अधिक सफल हो सकता है जिसके पास दस गुण तो हैं लेकिन एकाग्रता नहीं है।दुर्बलतम प्राणी भी यदि अपनी सारी क्षमताओं को एक ही लक्ष्य पर केंद्रित कर दे तो बहुत कुछ अर्जित कर सकता है लेकिन यदि वह अपनी क्षमताओं को यहां-वहां बिखराता

 

चलता है तो वह कुछ भी नहीं पा सकता। एकल लक्ष्य वाले व्यक्ति का उपहास करना एक फैशन सा बन गया ” है जबकि वे सारे लोग एकल लक्ष्यवाले ही थे जिन्होंने दुनिया की रंगत बदल डाली।आज के विशेषज्ञता वाले युग में वह व्यक्ति अपनी छाप छोड़ ही नहीं सकता जिसका विचार एक न हो-जिसका एक सर्वोच्च लक्ष्य न हो-जिसकी महत्त्कांक्षा न हो । जो आदमी इस जगत में अपनी छाप छोड़ना चाहता है-जो

 

सभ्यता को कुछ सबक देना चाहता है, उसे अपने सारे तीरों को एक ही निशाने पर साधना होगा। एक विचलित उद्देश्य और अस्थिर लक्ष्य के लिए बीसवीं या इक्कीसवीं सदी में कोई स्थान नहीं। अपने लक्ष्य पर स्थिर रहो । अपने व्यवसाय में बार-बार परिवर्तन सफलता के लिए अत्यंत घातक है। मान लीजिए, एक नवयुक ने पांच-छः साल तक मेवे का व्यापार किया है।

 

इतने समय के बाद वह महसूस करता है कि उसके लिए परचून का व्यापार ज्यादा ठीक है और बह मेये के व्यापार को छोड़कर परचून के व्यापार में लग जाता है।यानी वह अपने पांच-छः वर्ष के अनुभव को व्यर्थ कर देता है। इस तरह वह अपना व्यवसाय बदलकर अपने जीवन का बड़ा हिस्सा यूं ही गंवा देता है।वह कई व्यवसायों के बारे में थोड़ी-थोड़ी जानकारी तो इकट्ठा कर लेता है लेकिन पारंगत किसी एक में भी नहीं हो पाता। अआदमी बीस व्यवसाय अपनाने के बावजूद सब में अधूरा ज्ञान रखे तो उसका सफल और सुखी होना असंभव है…संपन्‍नता का तो सवाल ही नहीं उठता।

 

मात्र ऊर्जा का होना भी पर्याप्त नहीं है। एक स्थिर और अविचिलित लक्ष्य पर केंद्रित होना भी अनिवार्य है।इसी अभाव के चलते ही “असफल . जीनियस” और “विफल प्रतिभाओं’ की भरमार है। शिक्षित और प्रतिभाशाली परंतु विफल लोगों की हर शहर और कस्बों में भरमार है।लेकिन शिक्षा का तब तक कोई मूल्य नहीं, जब तक व्यक्ति किसी-न-किसी काम में दक्षता और एकाग्रता अर्जित न कर ले।

 

सोलारियो नामक खानाबदोश बर्तनसाज, जब कोल एंटोनियो डेल फियोरे की बेटी से प्यार करने लगा तो उसके सामने शर्त रखी गई कि चित्रकार की बेटी से शादी करने के लिए वर को भी उसी स्तर का चित्रकार बनकर दिखाना होगा।“क्या आप मुझे मात्र दस वर्षों की मोहलत देंगे ताकि मैं चित्रकारी सीख सकू ? इस प्रकार मैं आपकी बेटी का हाथ मांगने के योग्य हो जाऊंगा।” उसने . अनुरोध किया तो उसे मोहलत दे दी गई।

 

उसके पीछे एंटोनियो का विचार था कि अब वह खानाबदोश उसे दोबारा तंग नहीं करेगा। जब दस वर्ष पूरे होने ही वाले थे तो राजा की बहन ने एंटोनियो को एक चित्र दिखाया जिसमें मैडोना और एक बच्चे की तस्वीर थी। एंटोनियो ने इस चित्र की बहुत प्रशंसा की।सोचिये कि वह कितना हैरान हुआ होगा जब उसे पता चला कि यह चित्र सोलारियो ने बनाया है! सोलारियो के दृढ़ संकल्प ने उसे उसकी प्रेमिका दिला ही दी। ऐसा ही होता है दृढ़ संकल्प का चमत्कार!

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